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भगवान बुद्ध , बिलाल्पादक

बिलाल्पादक :- किसी नगर में बिलाल्पादक नामक एक धनिक रहता था। वह बहुत स्वार्थी था और सदाचार के कार्यों से कोसों दूर रहता था। उसका एक पड़ोसी निर्धन परन्तु परोपकारी था। एक बार पड़ोसी ने भगवान् बुद्ध और उनके शिष्यों को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। पड़ोसी ने यह भी विचार किया कि इस महान अवसर पर अधिकाधिक लोगों को भोजन के लिए बुलाना चाहिए। ऐसे संकल्प के साथ पड़ोसी ने बड़े भोज की तैयारी करने के लिए नगर के सभी व्यक्तियों से दान की अपेक्षा की एवं उन्हें भोज के लिए आमंत्रित किया। पड़ोसी ने बिलाल्पादक को भी न्यौता दिया।

भोज के एक-दो दिन पहले पड़ोसी ने चहुँओर घूमकर दान एकत्र किया। जिसकी जैसी सामर्थ्य थी उसने उतना दान दिया। जब बिलाल्पादक ने पड़ोसी को घर-घर जाकर दान की याचना करते देखा तो मन-ही-मन सोचा – “इस आदमी से खुद का पेट पालते तो बनता नहीं है फिर भी इसने इतने बड़े भिक्षु संघ और नागरिकों को भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया! अब इसे घर-घर जाकर भिक्षा मांगनी पद रही है। यह मेरे घर भी याचना करने आता होगा।”

जब पड़ोसी बिलाल्पादक के द्वार पर दान मांगने के लिए आया तो बिलाल्पादक ने उसे थोड़ा सा नमक, शहद, और घी दे दिया। पड़ोसी ने प्रसन्नतापूर्वक बिलाल्पादक से दान ग्रहण किया परन्तु उसे अन्य व्यक्तियों के दान में नहीं मिलाया बल्कि अलग से रख दिया। बिलाल्पादक को यह देखकर बहुत अचरज हुआ कि उसका दान सभी के दान से अलग क्यों रख दिया गया। उसे यह लगा कि पड़ोसी ने सभी लोगों के सामने उसे लज्जित करने के लिए ऐसा किया ताकि सभी यह देखें कि इतने धनी व्यक्ति ने कितना तुच्छ दान दिया है।

बिलाल्पादक ने अपने नौकर को पड़ोसी के घर जाकर इस बात का पता लगाने के लिए कहा। नौकर ने लौटकर बिलाल्पादक को बताया कि पड़ोसी ने बिलाल्पादक की दान सामग्री को थोड़ा-थोड़ा सा लेकर चावल, सब्जी, और खीर आदि में �

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